Tuesday, April 28, 2009

A Love Poem by Soordas

सखी, इन नैनन तें घन हारे
बिन ही रितु बरसत निसि बासर, सदा मलिन दोउ तारे
ऊरध स्वाँस समीर तेज अति, सुख अनेक द्रुम डारे
दिसिन्ह सदन करि बसे बचन-खग, दुख पावस के मारे
सुमिरि-सुमिरि गरजत जल छाँड़त, अंसु सलिल के धारे
बूड़त ब्रजहिं 'सूर' को राखै, बिनु गिरिवरधर प्यारे

- सूरदास

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